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धर्मिक आस्था,संस्कृति और सोर को वैश्विक पटल पर पहचान दिलाती- कुमौड़ की हिलजात्रा।

उत्तराखण्ड

धर्मिक आस्था,संस्कृति और सोर को वैश्विक पटल पर पहचान दिलाती- कुमौड़ की हिलजात्रा।

पिथौरागढ़– उत्तराखंड के पिथोरागढ़ जिले की सोरघाटी की विशेष सांस्कृतिक पहचान हिलजात्रा कुमौड़ गांव में धूमधाम से आयोजित की जाती है। देश के 11 हिमालयी राज्यों की तरह ही इस मुखौटा नृत्य को देखने के लिए लोगों को हुजूम उमड़ा। धार्मिक आस्था और मनोरंजन से जुड़े इस आयोजन में पहुंचे लोगों ने भगवान शिव के गण माने जाने वाले वीरभ्रद (लखिया) का आशीर्वाद लिया और क्षेत्र की समृद्धि की कामना की।

हर साल की तरह से ही इस साल भी कुमौड़ गांव के परंपरागत मैदान में हिलजात्रा का भव्य मंचन सायं पांच बजे शुरू हुआ। करीब तीन घंटे तक चले इस आयोजन की शुभारंभ सूत्रधार घोड़िया के पात्र ने संदेश देकर की। इसी के साथ मैदान में हिलजात्रा के पात्र आने लगे जिसमें सबसे पहले मैदान को साफ करने के लिए झाडृू वाला पहुंचा। इसके बाद दही विक्रेता, मछुवारा, बड़े बैलों की जोड़ी, नेपाली बैलों की जोडी, नटखट माने जाने वाला गाल्या बैल, हिरण- चितल, वयोवृद्ध महिला, पर्वतीय क्षेत्रों की संस्कृति का अंग पुतारियों ने मैदान में पहुंचकर अपने-अपने अभिनय के जरिए सोर घाटी की विशिष्ट लोक संस्कृति को जीवंत किया। हिलजात्रा में रोपाई के मंचन ने खेती में सामूहिकता और गांवों के मजबूत सामाजिक संबंधों का संदेश दिया।

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अंतिम क्षणों में हिलजात्रा का मुख्य पात्र लखिया अपने रौद्र रू प में मैदान में पहुंचा। दो गणों द्वारा रस्सियों से बांधकर मैदान में लाए गए लखिया ने अपना आक्रोश दिखाया। इस दौरान लखिया पर अक्षत डाल कर आक्रोश को शांत किया। इसके बाद लखिया ने दर्शकों ने फूल-अक्षतों से उनकी आराधना कर आशीर्वाद लिया। इस दौरान आशीर्वाद लेने के लिए होड़ लगी रही। भगवान शिव के गण के आशीर्वाद को विशेष माना जाता है। लखिया की भूमिका नीरज महर ने निभाई।

चार शताब्दी से हो रहा है हिलजात्रा का मंचन पिथौरागढ़: सोर घाटी के कुमौड़ गांव में लगभग 400 सालों से हिलजात्रा का मंचन हो रहा है। गांव के युवा यशवंत महर बताते हैं कि इससे पहले हिलजात्रा पड़ोसी देश नेपाल में होती थी। सोर घाटी के चार गांव कुमौड़, जाखनी, चैंसर और बिण में रहने वाले चार महर भाई नेपाल गए उन्होंने हिलजात्रा का मंचन देखा।

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महर भाइयों ने नेपाल के राजा से हिलजात्रा का मंचन अपने गांव में भी शुरू करने की अनुमति मांगी। इस पर राजा ने शर्त रखी यदि चारों भाईयों में कोई एक एक ही वार में बलि के लिए लाए जाने वाले भैंस की गर्दन अलग कर देगा तो इसकी अनुमति दी जाएगी। कुमौड़ गांव में रहने वाले सबसे छोटे भाई ने एक ही वार में भैंसे का सिर गर्दन से अलग कर दिया। जिस पर राजा ने खुश होकर सोरघाटी में हिलजात्रा मंचन की अनुमति दे दी। तभी से कुमौड़ गांव में हिलजात्रा का मंचन हो रहा है। कुमौड़ के अलावा कई अन्य गांवों में भी हिलजात्रा का मंचन होता है। ऋषेंद्र बताते हैं कि इसके मुख्यपात्र लखिया का संबंध दक्ष प्रजापति और भगवान शिव के बीच हुए विवाद से जुड़ा है। माता सती को यज्ञ कुंड में डाल देने से नाराज भगवान शिव ने अपने गण वीरभ्रद(लखिया)को भेजकर यज्ञ स्थल को तहस-नहस करा दिया था। लखिया का रौद्र रू प इसी का प्रतीक माना जाता है।

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गाल्या बल्द ने करतबों से किया हास्य रस का संचार हिलजात्रा के नटखट पात्र गाल्या बल्द (नटखट बैल) के करतबों ने दर्शकों को खूब मनोरंजन किया। गाल्या बल्द की लात उसके पास जाने वाले दर्शकों को पड़ी। इस दौरान उसके करतबों से खूब हास परिहास हुआ । वहीं मंगलगीत गाने वाली पुतारियां गांव की नन्हीं बालिकाओं ने अपने मंचन से सभी को मोहित किया। इस वर्ष हिलजात्रा पर्व पर मौसम साफ रहा। आयोजकों ने कोविड गाइड लाइन को ध्यान में रखते हुए आयोजन स्थल पर मास्क को अनिवार्य किया था। कुमौड़ में होने वाली हिलजात्रा का मंचन देश के कई राज्यों के साथ ही देश की राजधानी दिल्ली में भी कई बार हो चुका है।

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