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हिमांचल में जयराम से कहाँ हुई चूक? पुष्कर ने बदली थी उत्तराखंड की परम्परा,राष्ट्रीय राजनीति में धामी का बढेगा कद

उत्तराखण्ड

हिमांचल में जयराम से कहाँ हुई चूक? पुष्कर ने बदली थी उत्तराखंड की परम्परा,राष्ट्रीय राजनीति में धामी का बढेगा कद

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का कद हिमाचल प्रदेश में बीजेपी के सनसनीखेज अंदाज में हुई शिकस्त के बाद पार्टी के भीतर बहुत बढ़ जाएगा। मोदी फैक्टर और उत्तराखंड से बेहतर हालात में होने के बावजूद पार्टी बगल के हिमालयी राज्य में सरकार बचाने में बुरी तरह नाकाम रही. ये साफ़ हो गया कि उत्तराखंड में बीजेपी की सत्ता में वापसी के पीछे वाकई पुष्कर की मेहनत और उनकी छवि ने बहुत अहम् भूमिका निभाई।हकीकत ये है कि हिमाचल में बीजेपी की दशा उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव से पहले के मुकाबले के वक्त के हालात से कहीं बेहतर थी.खुद बीजेपी वाले ये कहने से बाज नहीं आ रहे थे कि पार्टी को 10-12 से अधिक सीटें नहीं मिल पाएंगी। ये पुष्कर के मुख्यमंत्री बनने से पहले की बात है। पुष्कर ने रात-दिन एक कर के जो जान लगाईं और पार्टी को खड़ा किया, उस पर भी पार्टी के ही सूबेदारों को यकीन नहीं था।

हिमाचल में भी उत्तराखंड की तरह का रिवाज था. यानि, एक बार कांग्रेस और एक बार बीजेपी की सरकार आती रहती है. इस बार भी वहां यही हुआ. पूरी ताकत लगाने-मोदी-शाह की जोड़ी के जी-जान लगा देने और संघ की तमाम मेहनत के बावजूद बीजेपी हिमाचल का दुर्ग ढहने से नहीं रोक पाई. कांग्रेस ने उसको धूल धूसरित कर डाला.

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चुनाव के तत्काल बाद खुद बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक (तब वही थे) का संदिग्ध टिवीटर सामने आया था. इसमें कहा गया था कि पार्टी की हार के लिए पुष्कर सिंह धामी जिम्मेदार हैं. मदन ने पूछने पर इस ट्वीट को फर्जी करार दिया था, लेकिन ये माना था कि ट्वीटर हैंडल उनका ही है. उनका अकाउंट हैक भी नहीं हुआ है। बीजेपी भारी बहुमत से जीत गई, लेकिन पुष्कर को पार्टी के ही कई दिग्गजों ने मिल के साजिशन हरा दिया.

उनको भय था कि फिर पार्टी सत्ता में आई तो पुष्कर हीमुख्यमंत्री बनेंगे. उनका राजनीतिक जीवन इससे बुरी तरह प्रभावित होगा. पुष्कर को चुनाव प्रचार के दौरान मोदी-शाह ने मुख्यमंत्री चेहरा घोषित किया हुआ था. दोनों ये भी जानते थे कि पार्टी के ही कुछ सिपहसालार पुष्कर को हराने में अधिक व्यस्त हैं.बजाय पार्टी को जितवाने में. उनको दंड देने के लिए ही खटीमा की लड़ाई हारने के बावजूद मोदी-शाह ने पुष्कर को फिर मुख्यमंत्री बना दिया।

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अभी भी पुष्कर के खिलाफ पार्टी के भीतर कुछ चेहरे अपने कार्ड गुपचुप ढंग से खेलने की कोशिश कर रहे हैं. पुष्कर के साथ ही हाई कमान इसको जानता है. हो सकता है कि गुजरात-हिमाचल चुनाव निबट जाने के बाद इस मोर्चे पर आला कमान अब भवें टेढ़ी कर ऐसों से निबटना शुरू कर दे. पुष्कर की मेहनत को पार्टी की विजय से कुछ ओहदेदार दबे भाव से इनकार करते थे.

उनका तर्क होता है कि मोदी-शाह की मेहनत से बीजेपी ने उत्तराखंड फतह किया था. उनके बूते ही एक बार तेरी-एक बार मेरी वाले रिवाज में बदलाव आया. कांग्रेस अपनी बारी का इन्तजार अब और 5 साल करेगी.सियासी विश्लेषकों की राय है कि मोदी-शाह फैक्टर के साथ ही चुनाव में पुष्कर फैक्टर भी उनके बराबर ही विजय के लिए जिम्मेदार रहा. सिर्फ मोदी-शाह के भरोसे चुनाव होते तो हिमाचल प्रदेश में बीजेपी का इस कदर बुरी तरह सफाया टूटी-फूटी-हताश कांग्रेस के हाथों न होता.मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर चुनाव के वक्त पुष्कर से कहीं बेहतर हालात में थे. सरकार चलाने का अनुभव पुष्कर के मुकाबले कहीं अधिक था. हिमाचल में बुरी हार से बीजेपी का ग्राफ जरूर झटके से नीचे आ गया लेकिन इसने पुष्कर के ग्राफ को ऊंचा करने के साथ ही पार्टी के दिग्गजों के सामने छवि और बड़ी तथा कद ऊंचा कर दिया है. ये मानने में अब हिचक नहीं होगी कि पुष्कर ने पार्टी को गहरे खड्डे से निकाल के हिमालय के शिखर पर बिठा दिया. एक बार कांग्रेस और एक बार बीजेपी की सरकार की प्रथा को ख़त्म कर डाला।

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