उत्तराखण्ड
उत्तराखंड में ‘क्लस्टर विद्यालय’ , दूरस्थ क्षेत्रों के बच्चों की शिक्षा पर सवाल
उत्तराखंड सरकार द्वारा प्रस्तावित ‘क्लस्टर विद्यालय’ योजना ने शिक्षा जगत में हलचल मचा दी है। योजना के तहत कम छात्र संख्या वाले विद्यालयों को 20–30 किमी दूर के बड़े स्कूलों में समायोजित करने की बात कही जा रही है, लेकिन राज्य की विषम भौगोलिक परिस्थितियां इस निर्णय को अव्यावहारिक बना देती हैं।
विशेषज्ञों और शिक्षाविदों का मानना है कि यह कदम अनुच्छेद 21A (शिक्षा का मौलिक अधिकार) और अनुच्छेद 45 (राज्य का नीति निर्देशक सिद्धांत) का उल्लंघन है। दुर्गम पहाड़ी इलाकों में जहां छात्र अक्सर नदी-नालों, जंगलों और बिना सड़क वाले रास्तों से विद्यालय पहुंचते हैं, वहां ₹100 यात्रा भत्ता किसी भी रूप में व्यवहारिक राहत नहीं दे सकता।
इसके साथ ही सरकारी विद्यालयों में शिक्षक, प्रधानाचार्य और कर्मचारियों की भारी कमी, लगातार घटती छात्र संख्या, और शिक्षकों को गैर-शैक्षणिक कार्यों में लगाना जैसी समस्याएं पहले से ही मौजूद हैं। ऊपर से यह योजना शिक्षा की जमीनी हकीकत से मुंह मोड़ने जैसा प्रतीत होती है।
शिक्षाविदों का मानना है कि क्लस्टर योजना के दूरगामी दुष्परिणाम होंगे—स्कूल छोड़ने वाले छात्रों की संख्या बढ़ेगी, असाक्षरता और बाल श्रम को बढ़ावा मिलेगा, और शिक्षा के निजीकरण की राह और आसान हो जाएगी। इससे न केवल गरीब और मध्यम वर्ग की शिक्षा पर असर पड़ेगा, बल्कि सामाजिक असमानता और राजनीतिक असंतोष भी बढ़ सकता है।
इस पृष्ठभूमि में शिक्षा क्षेत्र से जुड़े लोगों और जागरूक नागरिकों का आह्वान है कि शिक्षा को व्यावसायिक नहीं, अधिकारिक और सुलभ व्यवस्था बनाए रखने के लिए जनप्रतिरोध आवश्यक है। सरकार को चाहिए कि वह किसी भी परिवर्तनकारी योजना से पूर्व स्थानीय ज़मीनी हकीकत और सामाजिक प्रभावों का गहन मूल्यांकन करे।
