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पृथ्वी दिवस- बदलती धरती की दिशा

उत्तराखण्ड

पृथ्वी दिवस- बदलती धरती की दिशा

पिथौरागढ़- एल.एस.एम. परिसर के भूविज्ञान विभाग द्वारा पृथ्वी दिवस के उपलक्ष्य में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में“स्थिरता के लिए विज्ञान: बदलती धरती की दिशा में” का प्रथम दिवस उत्साहपूर्वक एवं सफलता के साथ संपन्न हुआ। संगोष्ठी सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय, अल्मोड़ा के तत्वावधान में आयोजित की जा रही है। कार्यक्रम की शुरुआत एक प्रतीकात्मक वृक्षारोपण अभियान से हुई, जो पर्यावरणीय चेतना और सतत विकास के प्रति एक सामूहिक संकल्प का प्रतीक रहा। संगोष्ठी के संयोजक भूविज्ञान विभागाध्यक्ष श्री दीपक पंत तथा आयोजन सचिव डॉ. कल्पना गुरुरानी ने आयोजन को दिशा प्रदान की।
उद्घाटन सत्र में कई प्रतिष्ठित अतिथियों की गरिमामयी उपस्थिति रही। कार्यक्रम की अध्यक्षता एल.एस.एम. परिसर, पिथौरागढ़ के निदेशक एवं सम्मेलन अध्यक्ष डॉ. हेम चंद्र पांडे ने की। मुख्य अतिथि के रूप में प्रसिद्ध भूवैज्ञानिक डॉ. प्रभास पांडे (पूर्व प्राध्यापक, रामलाल आनंद कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय) उपस्थित रहे। विशिष्ट अतिथियों में प्रो. राकेश कुमार (रामलाल आनंद कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय) एवं प्रो. सीमा गुप्ता (सांख्यिकी विशेषज्ञ एवं सतत भू-पर्यटन की विदुषी, दिल्ली विश्वविद्यालय) सम्मिलित रहीं। अन्य विशिष्ट अतिथियों में डॉ. प्रमोद कुमार (केंद्रिय भूविज्ञान विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय), डॉ. रवीश लाल (रामलाल आनंद कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय), सुश्री लेमिवोन जिमीक (रामलाल आनंद कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय), तथा डॉ. डी.के. उपाध्याय (डीन, छात्र कल्याण, एल.एस.एम. परिसर, पिथौरागढ़) की उपस्थिति ने सम्मेलन को विशेष गरिमा प्रदान की। मुख्य वक्ता डॉ. प्रभास पांडे ने कुमाऊँ हिमालय की भू-संपदा, भू-पर्यटन और सतत कृषि पर अपने विचार साझा किए। उन्होंने क्षेत्र की भू-वैज्ञानिक विरासत—जैसे धारचूला की संरचनाएं, अल्मोड़ा का बैंडेड ग्नाइस, और नैनीताल की तलछटी चट्टानों—के संरक्षण की आवश्यकता पर बल दिया।
डॉ. पांडे ने भू-संपदा स्थलों को स्थायी भू-उद्यान मॉडल के रूप में विकसित करने की योजना पर प्रकाश डाला, जिससे वैज्ञानिक अध्ययन, पर्यावरण शिक्षा और स्थानीय आजीविका को बढ़ावा मिल सके। उन्होंने अपनी परियोजना—कुमाऊँ हिमालय में भू-संपदा मूल्यांकन और भू-पर्यटन संभावनाओं का अध्ययन—के अंतर्गत किए जा रहे कार्यों की जानकारी दी, जो राष्ट्रीय हिमालय अध्ययन मिशन (NMHS) और पर्यावरण मंत्रालय (MoEF&CC) के सहयोग से संचालित है। उन्होंने भू-पर्यटन को स्थानीय सहभागिता से जोड़ने और शैक्षणिक संस्थानों में भू-संपदा शिक्षा को बढ़ावा देने का भी आह्वान किया। पहले दिन तीन तकनीकी सत्रों का आयोजन हुआ, जिनमें सतत विकास, पर्यावरण विज्ञान, जलवायु परिवर्तन, मैग्मावाद, भू-पर्यटन और विवर्तनिकी जैसे विषयों पर देशभर के विशेषज्ञों और शोधार्थियों ने अपने शोध प्रस्तुत किए और विचार-विमर्श किया।
संगोष्ठी का दूसरा दिवस कल, 23 अप्रैल को आयोजित किया जाएगा, जिसमें और भी तकनीकी सत्रों के माध्यम से पृथ्वी और पर्यावरण से जुड़े विविध पहलुओं पर विस्तृत चर्चा की जाएगी। यह संगोष्ठी विद्यार्थियों, शोधकर्ताओं और पर्यावरणविदों के लिए ज्ञानवर्धन और सहयोग का एक उत्कृष्ट मंच सिद्ध हो रही है।

राष्ट्रीय सम्मेलन के दूसरे दिन की शुरुआत DRDO वैज्ञानिक के प्रेरणादायक व्याख्यान से
पिथौरागढ़, 23 अप्रैल 2025: एल.एस.एम. परिसर, पिथौरागढ़ के भूविज्ञान विभाग द्वारा आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन “स्थायित्व के लिए विज्ञान: एक बदलती पृथ्वी की ओर” के दूसरे दिन की शुरुआत डॉ. हेमंत कुमार पांडेय (सेवानिवृत्त वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं उपनिदेशक, डीआईबीईआर, डीआरडीओ) के प्रेरणादायक व्याख्यान से हुई।
अपने आमंत्रित व्याख्यान में डॉ. पांडेय ने हिमालयी औषधीय पौधों पर तीन दशकों के अनुसंधान अनुभव साझा किए और पारंपरिक ज्ञान व आधुनिक विज्ञान के समन्वय की आवश्यकता को रेखांकित किया। उनके कार्य को दस पेटेंट और कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है, जिससे देशी नवाचारों को उल्लेखनीय बढ़ावा मिला है।
यह सत्र दिनभर चलने वाले विज्ञान-आधारित सतत विकास विषयक विचार-विमर्श के लिए प्रेरक सिद्ध हुआ।
दूसरे दिन के तकनीकी सत्रों में विवर्तनिकी, जैव विविधता, ग्रीन केमिस्ट्री और संसाधनों के सतत प्रबंधन जैसे विषयों पर प्रस्तुतियाँ हुईं। शोधकर्ताओं ने ग्लेशियर खतरों, फसल लचीलापन, वसंत पारिस्थितिकी तंत्र और पर्यावरण-अनुकूल नवाचारों जैसे महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा की।
सम्मेलन में देश के विभिन्न हिस्सों से आए प्रतिभागियों ने भाग लिया और लगभग 40 शोध पत्र प्रस्तुत किए गए।
समापन सत्र में विशेषज्ञों ने हिमालयी चुनौतियों से निपटने के लिए पारंपरिक ज्ञान और वैज्ञानिक अनुसंधान को एकीकृत करने की आवश्यकता पर बल दिया। सर्वश्रेष्ठ प्रस्तुति पुरस्कार एम.एससी. भूविज्ञान (चतुर्थ सेमेस्टर) की छात्रा तनुजा देवोपा को प्रदान किया गया। कार्यक्रम का समापन धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ, जिसमें सतत विकास में विज्ञान की भूमिका को पुनः पुष्ट किया गया।
आयोजन समिति में डॉ. दीपक पंत (संयोजक), डॉ. कल्पना गुरुरानी (संगठक सचिव), डॉ. चारु पंत, डॉ. अंकिता जोशी, डॉ. गरिमा, डॉ. राकेश, डॉ. नवीन तथा डॉ. कमलेश सक्रिय रूप से सम्मिलित रहे। एल.एस.एम. परिसर के निदेशक डॉ. हेमचंद्र पांडे के मार्गदर्शन में यह सम्मेलन सफलतापूर्वक संपन्न हुआ।

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