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वंशवाद को खत्म करने की राह पर भाजपा, चरणबद्ध तरीके से ‘एक परिवार, एक टिकट’ की ओर बढ़ेगी पार्टी

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वंशवाद को खत्म करने की राह पर भाजपा, चरणबद्ध तरीके से ‘एक परिवार, एक टिकट’ की ओर बढ़ेगी पार्टी

भाजपा लोकसभा चुनाव 2024 में वंशवाद-परिवारवाद को बड़ा चुनावी मुद्दा बनाने की तैयारी में है। पार्टी चरणबद्ध तरीके से आगामी विधानसभा चुनावों में ‘एक परिवार, एक टिकट’ का फार्मूला लागू करेगी। अगले आम चुनाव तक पार्टी इसके लिए मजबूत नियम बनाएगी। पार्टी इस मुद्दे को हवा देने से पहले अपना घर दुरुस्त करना चाहती है।पार्टी सूत्रों का कहना है कि बीते लोकसभा चुनाव में जीत हासिल करने के बाद पीएम मोदी ने पार्टी की उच्चस्तरीय बैठक में कई बार वंशवाद-परिवारवाद की राजनीति के खिलाफ बड़ी मुहिम शुरू करने की बात कही थी। उनका मानना है कि विधानसभा के हालिया कई चुनावों में पार्टी को इसका लाभ मिला है। यही कारण है कि उन्होंने अपने हाल के सभी कार्यक्रमों में परिवारवाद की राजनीति पर तीखा हमला बोला है।

हालांकि अपवाद स्वरूप भाजपा में भी एक परिवार के एक से अधिक सदस्य राजनीति में हैं। विधानसभा के साथ लोकसभा में भी कुछ परिवारों का प्रतिनिधित्व है। हालांकि पार्टी मानती है कि यह दायरा बेहद सीमित है, इसे और सीमित करने की राह तैयार की जा रही है। 

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इसके अलावा पार्टी में परिवारवाद को महत्व नहीं मिलने के कई अहम उदाहरण भी हैं। मसलन कभी पार्टी के शीर्ष नेताओं में शामिल रहे लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, अरुण जेटली, सुषमा स्वराज, अनंत कुमार के परिवार से जुड़े एक भी सदस्य राजनीति में नहीं हैं।

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एक परिवार, एक टिकट पर मंथन
‘एक परिवार, एक टिकट’ का फार्मूला आगामी लोकसभा चुनाव के पहले होने वाले गुजरात, हिमाचल प्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ विधानसभा में किया जाएगा। इसके बाद आगामी लोकसभा चुनाव के लिए भी इसका रास्ता निकाला जाएगा।

हालिया विधानसभा चुनाव से हुई शुरुआत
हाल ही में उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए। इनमें पार्टी ने वंशवाद की राजनीति से किनारा करने की दिशा में पहल की। गोवा में दिवंगत मुख्यमंत्री मनोहर परिकर के बेटे को टिकट  नहीं दिया गया। उत्तराखंड के कई पुराने दिग्गज नेता अपने परिवार के सदस्यों को टिकट दिलाना चाहते थे, मगर पार्टी नेतृत्व ने नहीं सुनी।

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दिख रही व्यापक संभावना
दरअसल वाम दलों, जदयू और आम आदमी पार्टी को छोड़ दें तो कई पार्टियों की कमान एक परिवार की दूसरी, तीसरी पीढ़ी के पास है। कांग्रेस खुद दशकों से परिवारवाद की राजनीति का आरोप झेल रही है। वहीं, डीएमके, वाईएसआर कांग्रेस, टीडीपी, तेलंगाना राष्ट्र समिति, बसपा, सपा, राजद, बीजद, तृणमूल कांग्रेस, एनसीपी, शिवसेना, अकाली दल, जद सेक्युलर, इनेलो, रालोद, पीडीपी जैसे सभी दलों पर परिवार का ही नियंत्रण है।

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