Connect with us

उत्तराखंड के लिये बड़ी उपलब्धि- मनोज सरकार ने बैडमिंटन में कांस्य पदक किया हासिल।

उत्तराखण्ड

उत्तराखंड के लिये बड़ी उपलब्धि- मनोज सरकार ने बैडमिंटन में कांस्य पदक किया हासिल।

टोक्यो – पैरालंपिक में उत्तराखंड के अर्जुन अवार्डी मनोज सरकार ने जापान के देयसुख को हराकर कांस्य पदक हासिल किया है। जिसके बाद से उनके घर-परिवार में जश्न और खुशी का माहौल है। उनके घर के बाहर बधाई देने वालों की भीड़ उमड़ पड़ी है। मनोज सरकार उत्तराखंड के रुद्रपुर के रहने वाले है।
पैरा बैडमिंटन खेल की एसएल-3 श्रेणी के सेमीफाइनल मुकाबले में मनोज सरकार को यूके (ग्रेट ब्रिटेन) के डेनियल बेथल ने दो सेटों में 21-8, 21-10 के स्कोर से हरा दिया था। इसके बाद मनोज सरकार ने कांस्य पदक के लिए जापान के देयसुख से मुकाबला किया।

गरीब परिवार में जन्मे हैं मनोज सरकार

रुद्रपुर तराई के जिला मुख्यालय में गरीब परिवार में जन्मे मनोज सरकार टोक्यो ओलंपिक में टिकट पक्का होने के बाद राष्ट्रीय फलक पर छाए हुए हैं। लेकिन मनोज को यह मुकाम आसानी से नहीं बल्कि बेहद संघर्षों के बाद हासिल हुआ है। आर्थिक तंगी के चलते मनोज को बचपन में साइकिल में पंचर जोड़ने, खेतों में दिहाड़ी पर मटर तोड़ने और घरों में पीओपी के काम करने पड़े थे।

यह भी पढ़ें -  यहां देव लोग रहते हैं, पवित्र कार्य में हम सब भागीदार हो रहे है-परम पूज्यनीय सर संघचालक डॉ मोहन भागवत

दवा के ओवरडोज से एक पैर ने काम करना बंद कर दिया था
दिलचस्प बात है कि होनहार खिलाड़ी को वर्ष 2012 में फ्रांस में हुई अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में चंदे से जुटाए रुपयों से प्रतिभाग करना पड़ा था। बचपन में दवा के ओवरडोज से उनके एक पैर ने काम करना बंद कर दिया था। घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के चलते वह अच्छे डॉक्टर से पांव का इलाज नहीं करा पाए थे। उनकी मां जमुना सरकार ने मजदूरी से जुटाए रुपयों से उनको बैडमिंटन खरीदकर दिया था।

यह भी पढ़ें -  प्रधानमंत्री के नौ आग्रहों को विकास का आधार बनाएगी उत्तराखंड सरकार – मुख्यमंत्री धामी

बचपन से ही उन्हें बैडमिंटन खेलने का शौक था। वह पहले अपनी उम्र के बच्चों के साथ खेला करते थे। लेकिन उनकी शटल टूटने पर बच्चे उन्हें अपने साथ खेलने नहीं देते थे। जिसके बाद उन्होंने अपने से बड़ी उम्र के खिलाड़ियों के साथ खेलना शुरू किया। लेकिन पांव में कमजोरी के चलते उन्हें कई बार लोग लंगड़ा कहकर भी चिढ़ाते थे।

यह भी पढ़ें -  राज्य स्थापना दिवस की पूर्व संध्या पर शहीद स्मारक में किया गया दीपोत्सव

इससे परेशान होकर उन्होंने बैडमिंटन खेलने का विचार छोड़ दिया था। फिर टीवी में बैडमिंटन की वॉल प्रैक्टिस (दीवार में शटल को मारकर प्रैक्टिस) देखने के बाद उन्होंने घर पर ही अभ्यास शुरू किया था।

Continue Reading

More in उत्तराखण्ड